अतिथि सत्कार
सालों पहले एक नगर का राजा अपने राज्य में रात को अपना रूप बदलकर घूमता था। वो रूप बदलने के बाद लोगों से मिलकर अपने यानी राजा के बारे में जानने की कोशिश करता, और अपनी प्रजा से बारे में निकट से यह भी जानने की कोशिश करता कि मेरी प्रजा अपने घर आए हुये अतिथि का अतिथि सत्कार कैसे करती है । वह उनकी समस्याओं को समझता था और उन्हें सुलझाने की कोशिश करता । एक रात जब वह नगर घूमकर आया, तो अचानक जोर से बारिश होने लगी । उसने बिना किसी देरी के एक गरीब के घर का दरवाजा खटखटाया ।
राजा के दरवाजा खटखटाने के बाद घर से एक आदमी निकला। वह एक गरीब किसान था, जो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था। बारिश तेज थी, तो किसान ने राजा को अंदर आने के लिए कहा । राजा ने घर में जाने के बाद पूछा, क्या आप मुझे कुछ खिला सकते हैं ? मुझे बहुत तेज भूख लगी है ।
वो गरीब किसान और उसका परिवार पिछले 3 दिनों से भूखा था और उसके घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं था । किसान ने मन में सोचा कि हम भले ही तीन दिनों से भूखे हैं परंतु हम अपने अतिथि को भूखा नहीं रख सकते । अब किसान ये सोच-सोचकर परेशान हो गया कि अपने अतिथि का पेट कैसे भरू?, तभी उसने घर के सामने वाली दुकान से चावल चुराने की तरकीब सोची । उसने सिर्फ अतिथि के लिए ही दो मुट्ठी चावल लिया और उसे पकाकर राजा को खिला दिया। तब तक बारिश रुक गई थी और राजा अपने घर चला गया।
दूसरे दिन दुकान का मालिक अनाज की चोरी की शिकायत लेकर राजा के पास पहुंचा । राजा ने दुकान के मालिक और उस गरीब किसान को अपनी सभा में प्रस्तुत होने का आदेश दिया । सबसे पहले सभा में पहुँचे किसान ने राजा के सामने जाकर अपनी चोरी का इल्जाम कबूल कर लिया और बीती हुई रात की पूरी बात राजा को बता दी । किसान ने राजा से कहा कि मैंने चोरी अपने अतिथि का पेट भरने के लिए की थी, लेकिन मेरे परिवार ने उस अनाज का एक दाना भी नहीं खाया ।
गरीब किसान की बातें सुनकर राजा बहुत दुखी हुआ और उसने किसान को बताया कि अतिथि के रूप में मैं स्वयं तुम्हारे घर आया था । इसके बाद राजा ने सभा में पहुंचे दुकानदार से पूछा कि क्या आपने अपने पड़ोसी को चोरी करते हुए देखा था ? दुकानदार ने जवाब दिया कि हाँ मैंने इसे रात में चोरी करते हुए देखा था ।
दुकानदार की बात सुनकर राजा ने कहा कि इस चोरी के लिए सबसे पहले मैं जिम्मेदार हूँ और फिर दूसरे जिम्मेदार तुम हो, क्योंकि तुमने अपने पड़ोसी को अनाज की चोरी करते हुए देखा, मगर कभी उसके भूखे परिवार को नहीं देखा । तुमने अपने पड़ोसी होने का धर्म बिल्कुल नहीं निभाया । इतना कहने के बाद राजा ने दुकानदार को सभा से घर जाने के लिए कहा और किसान की अतिथि निष्ठा भाव, ईमानदारी और उसके अतिथि सत्कार से खुश होकर उसे एक हजार सोने के सिक्के इनाम के रूप में दिये ।
अपनी तुलना दूसरों से ना करें
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