अनजान मुसाफिर
धुंध से भरी उस सर्द रात में, अजय अकेला स्टेशन के उस छोटे से बेंच पर बैठा था। ठंड इतनी थी कि हाथों को गर्म रखने के लिए वह बार-बार अपने आप से लिपटता जा रहा था। उसकी जिंदगी भी कुछ ऐसी ही उलझनों से भरी थी, जैसे यह धुंध और ठंड। आज वह एक नए सफर पर निकला था, सफर में तो था, पर उसे खुद नहीं पता था कि जा कहाँ रहा है। इसी बीच एक अधेड़ उम्र का अनजान मुसाफिर उसके पास आया और बैठ गया।
अजय ने उस अनजान आदमी की ओर देखा, जो एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ अजय की ओर देख रहा था। वह मुसाफिर साधारण कपड़ों में था, एक पुराने काले कोट के साथ और हाथ में लकड़ी की एक छड़ी पकड़े हुए था। अजय को देखकर उसने हल्के से सिर हिलाया और मुस्कुराया।
“कहाँ का सफर है, बेटे?” उस अनजान मुसाफिर ने अजय से पूछा।
अजय को नहीं पता था कि इस सवाल का क्या जवाब दे। वह खुद ही तो यह नहीं जानता था कि वह कहाँ जा रहा है। जिंदगी से हारकर बस यूं ही निकल पड़ा था, शायद खुद को कहीं दूर ढूंढने।
“पता नहीं,” अजय ने गहरी सांस लेते हुए जवाब दिया।
“क्या हुआ बेटा, ऐसा क्या हो गया कि घर छोड़ने की नौबत आ गई?” मुसाफिर ने गहरी समझ के साथ पूछा। उसकी आवाज में एक ऐसा अपनापन था जो अजय को अजीब सा सुकून दे रहा था।
अजय ने धीरे-धीरे अपने दर्द की कहानी उस अनजान मुसाफिर के सामने खोलनी शुरू की। उसने बताया कि कैसे जिंदगी ने उसे कई बार धक्के दिए हैं। नौकरी छूटना, दोस्तों का साथ छोड़ देना और घर की जिम्मेदारियों का बोझ – सब कुछ उसकी आत्मा को तोड़ता जा रहा था।
मुसाफिर ने उसे ध्यान से सुना और फिर गहरी सांस लेते हुए बोला, “बेटा, मैंने जिंदगी में कई ऐसे लोग देखे हैं, जिन्होंने हार मान ली और अपने रास्ते छोड़ दिए। पर मैं भी एक अनजान मुसाफिर हूँ, और मैंने सीखा है कि जीवन का असली अर्थ कभी-कभी हमें तब मिलता है जब हम अंधेरे में चल रहे होते हैं।”
अजय ने उसकी बातों को ध्यान से सुना। उस अनजान मुसाफिर की आवाज में एक गहरी सच्चाई थी, जो उसके दिल को छू रही थी। ऐसा लग रहा था मानो वह आदमी उसके जीवन का हर कोना समझता हो।
अचानक उस मुसाफिर ने अपनी छड़ी से स्टेशन की ओर इशारा किया। “देखो बेटा, सामने वो जो रोशनी है, वह तुम्हारे अगले कदम की ओर इशारा कर रही है। ये रोशनी तुम्हें रास्ता दिखाने आई है। तुम चाहे कहीं भी जाओ, तुम्हें अपने भीतर की रोशनी को ढूंढना है।”
अजय ने देखा कि वह मुसाफिर किसी सिद्धांत की तरह बात कर रहा था, और उसका हर शब्द एक गहरी सीख दे रहा था।
कुछ देर के बाद, ट्रेन की आवाज आई और स्टेशन पर गाड़ियों का शोर गूंजने लगा। मुसाफिर ने अजय को अपनी ओर खींचा और एक पेपर पर कुछ लिखकर उसे थमा दिया।
“जब तुम मंज़िल से हार मान लो, तो इसे पढ़ना,” कहकर वह मुसाफिर ट्रेन में सवार हो गया।
अजय ने उस कागज को अपनी जेब में रख लिया और घर की ओर लौटने का मन बना लिया। उसने सोचा कि इस अनजान मुसाफिर की बातें शायद उसकी जिंदगी को कोई नया मोड़ दे सकें।
अगले दिन, अजय ने अपने काम की तलाश शुरू की और मेहनत से कभी हार न मानने का फैसला किया।
समय बीतता गया, और अजय की जिंदगी में धीरे-धीरे बदलाव आने लगे। वह अपने संघर्षों का सामना करना सीख गया और अपनी जिंदगी को नई दिशा देने में सफल हुआ। कुछ सालों के बाद जब उसे फिर से मुश्किल वक्त का सामना करना पड़ा, तब उसने उस कागज को निकाला, जो अनजान मुसाफिर ने उसे दिया था।
कागज पर लिखा था, “तुम्हारे जीवन का हर कठिन मोड़ तुम्हारे आत्मविश्वास की परीक्षा है। हार मत मानो, क्योंकि एक अनजान मुसाफिर ने तुम्हें यह राह दिखाई थी।”
अजय ने उस कागज को चूमा और मुस्कुराते हुए खुद से वादा किया कि वह कभी हार नहीं मानेगा।
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