अपहरण एक ऐसा शब्द है, जिसके सुनते ही बड़े बड़ों की रूह काँप जाती है । यह किसी भू-भाग विशेष की समस्या नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण विश्व इस समस्या से किसी न किसी रुप में जूझता रहता है । समय के हर काल खंड में इसका वर्णन है । माता सीता का यदि अपहरण नहीं होता, तो रामायण का यह स्वरुप, जिसे हम जानते हैं, नहीं होता । हमारी यह कहानी अपहरण की ऐसी ही एक कोशिश पर आधारित है । यहाँ पात्रों के नाम काल्पनिक हैं ।
सत्य घटना पर आधारित कहानी “अपहरण”
राकेश जमशेदपुर में टाटा कंपनी में अधिकारी के पद पर कार्यरत थे और कंपनी के द्वारा द्वारा उपलब्ध करवाये गए आवास में रहते थे । एक दिन की बात है, जब वे कार्यालय से घर आकर बैठे ही थे कि टेलीफोन की घंटी बजने लगी । झुंझलाते हुये ड्राइंग रूम के एक कोने में रखे टेलीफोन के रिसीवर को उठाकर बात करने लगे । पाँच मिनट के बाद जब बातें समाप्त हुई तो राकेश एकदम गुमसुम होकर सोफ़े पर बैठ गए । मानो जैसे एकदम से साँप सूंघ गया हो । उनकी पत्नी रेणु उधर रसोई से चाय, नमकीन और पानी लेकर आयी तो इनका यह हाल देखकर एकदम से चौंक गयी । सोचने लगी कि अभी तो चहक रहे थे और बाज़ार चलने की बाते कर रहे थे, अभी क्या हो गया । रेणु की आवाज देने पर इनकी तंद्रा टूटी और उन्होने रेणु से पूछा कि दोनों बच्चे कहाँ हैं ? रेणु ने बताया कि शाम का समय है, बाहर पार्क में खेलने गए हैं । तब राकेश ने कहा कि उन्हे तुरंत अंदर बुलाओ, फिर बातें बताता हूँ । लेकिन राकेश से रहा नहीं गया और रेणु के साथ वह भी पार्क की ओर भागे ।
अंधेरा होने वाला था । अन्य बच्चों के साथ इनका 13 साल का बेटा, मोहित और 8 साल की बेटी शालिनी भी खेल रही थी । पापा-मम्मी को देखते ही दोनों भाग कर उनके पास आ गए । मोहित की साँसे अभी भी तेज तेज चल रही थी । वह भी कुछ डरा हुआ सा लग रहा था । मोहित ने पापा को बताया कि पार्क के दूसरी तरफ वाले गेट पर एक मोटा सा आदमी, जो धारीदार टी-शर्ट पहना हुआ था और चेहरे पर रूमाल बांधे हुये था, मुझे बार – बार अपनी तरफ बुला रहा था और कह रहा था कि उसे कुछ पूछना है ।
रेणु बिना बताए ही कुछ – कुछ समझने लगी थी । उसने बिना कुछ बताए ही पार्क में खेल रहे सभी बच्चों को अपने – अपने घर जाने के लिए कहा और अपने दोनों बच्चों को लेकर पति के साथ अपने घर आ गयी । थोड़ी देर के लिए घर में एकदम से मरघट की शांति छा गयी । थोड़ी देर के बाद राकेश ने अपने बेटे मोहित से पूछा कि स्कूल में कुछ हुआ तो नहीं था । तब मोहित ने बताया कि स्कूल से आते समय भी एक ओर मोटा सा बदमाश जैसा लगने वाला आदमी हमें अपनी तरफ बुला रहा था, किन्तु बच्चों की भीड़ के कारण वह हमारे पास नहीं आ पाया । शालिनी तो उसके पास जाना चाह रही थी, किन्तु मैंने उसे रोक दिया ।
यह सब सुनकर राकेश सिहर गया और उसने घर में आदेश दे दिया कि अभी कुछ दिनों तक कोई भी घर से बाहर नही निकलेगा । फिर राकेश ने बताया कि फोन पर कोई व्यक्ति बच्चों के अपहरण कर लेने की धमकी दे रहा था और बता रहा था कि अगर पुलिस में खबर की तो पूरे परिवार को मार देगा । साथ में कह रहा था कि दो दिनों के अंदर उसे दस लाख रुपए दे दिये गए तो वह शांत हो जाएगा और किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा । और यदि ऐसा नहीं किया तो, घर-परिवार में किसी को भी नुकसान पहुँचा सकता है ।
राकेश का दिमाग काम नहीं कर रहा था । तभी अचानक रेणु ने सुझाया कि आपके वरिष्ठ अधिकारी प्रभाकर जी के रिश्तेदार इंटेलिजेंस ब्यूरौ में उच्च पद पर कार्यरत हैं, क्यों न उनसे कुछ मदद ली जाए । अब प्रश्न यह था कि प्रभाकर जी से संपर्क किस प्रकार किया जाए, ताकि अपहरण करने वालों को पता न चले । अतः सोच विचार कर राकेश ने अपने कार्यालय की यूनिफॉर्म में ही घर से निकलने का फैसला किया, जिससे किसी दूसरे को कुछ भी पता न चले । फोन टैपिंग होने के डर से फोन भी नहीं किया । राकेश ने गाड़ी को फैक्ट्री की ओर ले जाना उचित समझा और उधर से घूमते हुए प्रभाकर जी के घर चले गए । प्रभाकर जी भी उन्हे इस हालत में देखकर चौंक गए । राकेश ने कहा कि आपसे अकेले में कुछ बात करनी है । यह सुनकर प्रभाकर जी उन्हे अपने घर की छत पर लेकर चले गए । राकेश की सारी बातें सुनकर प्रभाकर जी भी दंग रह गए ।
पूरा विवरण सुनने के बाद प्रभाकर जी ने राकेश को घर वापस भेज दिया और कहा कि जब तक उसे न कहा जाए वह भी घर से बाहर न निकले । उसके बाद प्रभाकर जी अपने बहनोई मोहन जी, जो इंटेलिजेंस ब्यूरौ में उच्च पद पर कार्यरत थे, उनके घर चले गए और उन्हें सारी घटना बतायी । इसके बाद देर रात अपने घर वापस आ गए । प्रभाकर जी के घर भी सब लोग चिंतित थे और व्यग्र भी, उन्होने सबको शांत किया और कहा कि सारी बातें बाद में बतायी जायेंगी ।
दरअसल अपहरण करने वालों की धमकी ही कुछ ऐसी थी कि राकेश के पूरे परिवार पर खतरा था । अतः मोहन जी को जो करना था पूरी सावधानी के साथ करना था । अगली सुबह प्रभाकर जी को इंटेलिजेंस ब्यूरौ के गुप्त कमरे में बुलाया गया । वहाँ उन्हे समझाया गया कि जाकर आप राकेश जी से कह दे कि अगली बार जब अपहरण करने वालों का फोन आए तब वे बिल्कुल घबराए नहीं और घर से न निकलें । फोन पर ही उससे स्थान, समय और व्यक्ति की पहचान पूछ लें ताकि सही व्यक्ति को रुपया दिया जा सके । राकेश ने इन सब बातों को ध्यान से सुन लिया किन्तु सोच में पड़ गए कि वह दस लाख रुपये का इंतज़ाम किस प्रकार करेगा । यह देख प्रभाकर जी ने उन्हे सांत्वना देते हुये कहा कि वह केवल वही करे जो उससे कहा जा रहा है और बाकी की चिंता छोड़ दे । इधर मोहन जी ने राकेश के घर के पास सादे वस्त्रों में अपने विभाग के लोगों को तैनात कर दिया और वे सभी लोग राकेश तथा उसके घर की निगरानी चुपके से करने लगे । अब सारा नियंत्रण उनके हाथ में था । उन्होने पाँच सौ के नोट के आकार की नोटों की पैकेट बनवाए और हरेक पैकेट के ऊपर तीन चार नोट असली रखे । इन नोटों के पैकेटों को एक ब्रीफकेस में सजा दिया गया और इस ब्रीफकेस को प्रभाकर जी के हाथों राकेश के घर भिजवा दिया ।
अब अगले दिन न तो राकेश और न ही उनके बच्चे घर से बाहर निकले । इस कारण कार्यालय से भी फोन आ गया । राकेश किसी भी तरह तबीयत खराब होने का बहाना मार कर रह गए । बच्चों के विद्यालय में भी तबीयत खराब होने की बात फोन पर बता दी । किन्तु मित्रों के फोन आने लगे कि ऐसी कौन सी बात हो गयी है कि पूरा परिवार घर के अंदर सिमट कर रह गया है । अपहरण करने वाले फोन टैपिंग के के द्वारा इन्हीं बातों को सुनने के लिए व्यग्र थे । चूंकि राकेश जान गया था कि फोन के ऊपर उसकी बातें सुनी जा रही है, उसने अपने मित्रों को फोन पर इधर- उधर कि बातें बतायी ।
इसके बाद देर रात में अपहरण करने वाले का धमकी भरा फोन आ गया । वह कह रहा था कि कितने दिनों तक घर से बीमारी का बहाना बनाकर नहीं निकलोगे । इस पर राकेश ने कहा नहीं-नहीं ऐसी बात नहीं है । दर असल मैं दस लाख रुपये का इंतजाम कर रहा हूँ । दो दिन का समय दीजिए । फिर राकेश ने समय और स्थान का विवरण पूछा जहाँ रुपये देने हैं । साथ में विनती करके निवेदन किया कि उसके परिवार को किसी प्रकार का नुकसान न पहुंचाया जाए । इस पर अपहरणकर्ता ने एक बहुत बड़े से सुनसान बगीचे में, एक खास स्थान पर दो दिनों के बाद, रात के नौ बजे रुपए लेकर आने के लिए कह दिया और मिलने का कोड वर्ड भी बता दिया ।
यहीं पर अपहरण करने वालों से वह भूल हो गयी जो किसी भी अपराधी से आमतौर पर हो जाती है । उसे यह अनुमान भी नहीं था कि गुप्तचर विभाग के लोग फोन पर उसकी बातों को सुन रहे थे । राकेश के घर में पूरी बेचैनी थी । अगले दिन किसी भी तरह वह छिप-छिपाकर प्रभाकर जी के घर पहुँच गया । उसने अपनी बेचैनी की बात बतायी । प्रभाकर जी ने उसे सांत्वना देकर भेज दिया और निर्देश दिया कि तय तिथि और समय पर वह अपने स्कूटर से अकेले ही दिये गए ब्रीफकेस को लेकर चले जाए । बिल्कुल निश्चिंत रहे । लेकिन राकेश तो क्या, उसके पूरे परिवार का दिन का चैन और रातों की नींद गायब थी । ऊपर से इन बातों की चर्चा भी किसी से नहीं कर सकते थे ।
तय तिथि और समय पर राकेश पूरी हिम्मत जुटाकर घर से पूजा करके निकला । उसकी पत्नी और बच्चों ने भी उसे बड़े ही भरे मन से घर से जाने दिया । राकेश के चेहरे पर पूरा तनाव झलक रहा था । वह रात को आठ बजे ही उस सुनसान बगीचे के लिए निकल पड़ा। बगीचा था भी बहुत बड़ा । राकेश बगीचे में रात के करीब साढ़े आठ बजे पहुँच गया ।
बगीचे के गेट पर कोई अचानक बड़ी तेजी से पीछे से आया और कानों में कह गया “डरो मत सब ठीक है, बताए गए पेड़ के नीचे पहुँच जाओ”। यह सुनकर वह और डर गया । फिर उसने हिम्मत किया और हनुमान चालीसा का पाठ करते हुये रात के घोर अंधेरे में सुनसाम बगीचे में बताये गए पेड़ के नीचे ब्रीफकेस लेकर पहुँच गया ।
ठीक नौ बजे अपहरण करने वाली टीम का एक आदमी कहीं से प्रकट हुआ और फोन पर बताये गए कोडवर्ड को राकेश के कानों में कहा । राकेश ने भी अपने कोडवर्ड को बताया । बस अब उस आदमी ने पूछा “पूरा माल है ना ” । राकेश की सहमति पर वह आदमी ब्रीफकेस लेकर चल दिया ।
लेकिन यह क्या । अभी वह अपहरण करने वाली टीम का आदमी बीस पच्चीस कदम ही चला था कि पेड़ों पर बैठे हुये लगभग 20-25 आदमी कूद पड़े और उन सभी ने उस आदमी के ऊपर बंदूक तान दिया । वह आदमी अब पूरी तरह उनके नियंत्रण में था । फटाफट उसे काबू में करने के बाद उसे विभाग के पूछ – ताछ कमरे में ले जाया गया । थोड़ी देर की पूछताछ में ही उसने तुरंत ही सारा सच उगल दिया । उसके बाद रात भर चली कार्रवाई में पूरे गिरोह के लोग गिरफ्तार हो गए और उन्हें स्थानीय पुलिस को सुपुर्द कर दिया । दरअसल प्रभाकर जी के बहनोई ने गुप्तचर विभाग के करीब तीस चालीस आदमियों को दोपहर से ही सादे वस्त्रों में तैनात कर दिया था । लोगों को शक न हो इसलिए इस दल में स्त्री – पुरुष सभी थे और आम नागरिक की वेश भूषा में थे । बगीचे के गेट पर मिलने वाला आदमी भी गुप्तचर विभाग का ही था ।
अगले दिन के अखबार में मुखपृष्ठ पर छपा था, “शहर के बहुत बड़े अपहरण करने वाले गिरोह का पुलिस विभाग द्वारा भंडाफोड़” । इस पूरी कार्रवाई में शामिल किसी भी व्यक्ति का नाम नहीं छपा था । राकेश भी पूरी शांति में था कि उसके परिवार का नाम कहीं नहीं आया । बाद में उसने प्रभाकर जी, उनके बहनोई और गुप्तचर विभाग को कोटिशः धन्यवाद दिया ।
Q. 01 अपहरण से आप क्या समझते हैं ?
Ans. जब किसी व्यक्ति, बच्चे या किसी अन्य वस्तु को बलपूर्वक या छलपूर्वक चुरा या छुपा लिया जाता है, उसके बाद उसको वापस लौटाने के लिए पैसों की माँग या अन्य किसी वस्तु की मांग की जाती है तो इस प्रकर की घटना को अपहरण कहते हैं ।
Q. 02 अपहरण कितने प्रकार के होते हैं ?
Ans. भारतीय दंड संहिता के अनुसार अपहरण दो प्रकार के अपराध होते हैं – 1. अपहरण 2. व्यपहरण ।
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काश मैं डॉक्टर होता ! (Kash Main Doctor Hota)
संध्या का सफर:हिंदी प्रेम की अनूठी कहानी
बहुत अच्छी कहानी लिखी है । पढ़कर दिल खुश हो गया ।