स्वच्छ धरा में बसता स्वस्थ जीवन

प्राकृतिक संसाधनों के सदुपयोग से देश एवं व्यक्ति मात्र का विकास संभव है । हमारी धरा पर प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता है । धरा का कोई रंग – रूप नहीं होता है, वह हम मानव जाति पर निर्भर करती है कि हम इसे किस रूप में सुसज्जित करें । उदाहरण के लिए हम इस पर बड़ी- बड़ी इमारतें, कारखाने इत्यादि बना सकते हैं या चारो-तरफ हरियाली की खुशहाली फैला सकते है । धरा का संतुलन अति आवश्यक है क्योंकि धरा हमारे जीवन स्वास्थ्य की आधारशिला है । इसके संतुलन के बिगड़ने से प्राकृतिक आपदाओं का निमंत्रण सुनिश्चित है ।

जीवन की आधारशिला है स्वच्छ धरा

इसके बिना जीवन है अधूरा ।

स्वच्छ धरा में बस्ता जीवन

स्वच्छ धरा में बस्ता स्वस्थ जीवन

जीवन की आधारशिला है स्वच्छ धरा

इसके बिना जीवन है अधूरा ।

एक स्वच्छ धरा का संतुलन बनाने में प्रत्येक मानव का समान दायित्व है , इसे हम एक दूसरे पर डालकर अनदेखा नहीं कर सकते ।

स्वच्छ धरा बनाना है

जीवन को सुदृढ़ रखना है ।

कोई भी देश विकसित या विकासशील की ओर तभी अग्रसर होता है जब वह अपने प्राकृतिक संसाधनों का समुचित तरीके से सदुपयोग करें । अगर इसके संतुलन में थोड़ी भी छेड़छाड़ होती है तो प्राकृतिक आपदाओं का संकेत सुनिश्चित है । उदाहरण के तौर पर पेड़ों की कटाई करना एवं उनकी जगह पर इमारतें  बनाना । दुष्प्रभाव : पानी की समस्या का सामना करना । इसके विपरीत ज्यादा मात्रा में पेड़ लगाना, प्रभाव : संतुलित वर्षा होना एवं स्वच्छ वायु का प्रवाह होना

धरा ही सबकी जननी है ।

इससे छेड़छाड़ भारी पड़नी है ॥

कृत्रिम संसाधनों का उपयोग भी समुचित होना चाहिए अन्यथा ये भी हमारी धरा पर दुष्प्रभाव डालते है । कृत्रिम संसाधनों से धरा के आकार में परिवर्तन जितनी तेजी से अग्रसर होता है उतनी ही विकास की ओर प्रगति भी होती है ।

धरा है तो जीवन है ।

बिना इसके सब निर्जन है ॥

एक स्वच्छ धरा पर संकलित चीजें निम्नलिखित है – जैसे पेड़ – पौधो का होना, स्वच्छ जल का प्रवाह होना, शुद्ध वायु का प्रवहण होना इत्यादि । हमने हमेश यह कहते हुये सुना है कि आदमी जैसा बोता है वैसा ही काटता है, उदाहरण के लिए यदि हम धर को स्वच्छ रखेंगे तो धारा भी हमारा उतना ही ख्याल रखेगी । धारा जितना हमसे लेती है उससे कहीं ज्यादा हमें प्रदान कर देती है ।

 धरा है तो हम है ।

इसके बिना सब खत्म है ॥

स्वच्छ धरा से हमारे स्वास्थ्य का सीधा अनुपात है, उदाहरण के लिए एक स्वच्छ धरा से सभी स्वच्छ एवं शुद्ध चीजें मानव जाति को प्रदान होती है जैसे पीन के पानी, सांस लेने के लिए शुद्ध वायु इत्यादि । एक स्वस्थ धरा से एक स्वस्थ मनुष्य की उत्पत्ति होती है जिससे स्वस्थ समाज का निर्माण होता है और आगे चलकर एक स्वस्थ राष्ट्र का सृजन होता है ।

 स्वच्छ धरा से बंता है स्वस्थ मानव एवं राष्ट्र ।

इसके बिना होता है सिर्फ एवं सिर्फ विनाश ॥

यदि हम अपनी कल्पना को नया मोड़ दे कि एक धरा को स्वच्छ न रखे तो क्या होगा ? प्राकृतिक आपदा जैसे – बाढ़ का आना, सूखा पड़ना, आर्थिक मंदी इत्यादि । हमारी इस धरा पर अपना जीवन यापन करने के लिए आवश्यकता की चीजें उपलब्ध हैं और वह तभी तक अपना अस्तित्व रखती हैं जब तक कि संतुलित हैं । संतुलन बिगड़ते ही इनके श्रेणी में परिवर्तन होगा और कहनी न कहीं इसका दुष्प्रभाव प्रदर्शित होगा । स्वच्छ धरा न होने से पर्यावरण पर भी गहरा असर पड़ता है, जैसे ऑक्सीज़न की मात्र का वायुमंडल में कम होना तथा ग्रीन हाउस का प्रभाव बढ़ना आदि । ज्यादा से ज्यादा कृत्रिम संसाधनों जैसे – कल कारखानें, यातायात के साधन इत्यादि के उपयोग से धुएँ का शुद्ध हवा में मिलना और ओज़ोन परत में छिद्र होना, यह भी इसके दुष्प्रभाव हैं जो बड़ी- बड़ी खतरनाक बीमारियों को जन्म देते हैं ।

 धरा है को बचाना है ।

पर्यावरण को संतुलित बनाना है ॥

हमारे द्वारा उत्सर्जित प्लास्टिक, रबर इत्यादि व्यर्थ पदार्थ इस धरा को प्रदूषित कर रहें हैं । हमें पता है कि प्लास्टिक पदार्थों का विखंडन बहुत ही मुश्किल है । यह धरा पर सालों साल तक बिना नष्ट हुये पड़े रहते है और वर्ष के जल के साथ मिलकर खेतों तक जा पहुँचते है और धीर – धीरे हमारी उपजाऊ जमीन बंजर की गोद चढ़ जाती है । जिससे धरा की उपजाऊ जमीन से उत्पन्न होने वाले अनाज पर सीधा प्रभाव पड़ता है । देश के विकास के लिए हम सफल परमाणु परीक्षण करते हैं जिससे उत्सर्जित होने वाले रेडियोएक्टिव पदार्थ भी हमारी इस धरा पर बहुत गहरा प्रभाव डालते हैं इसकी क्षतिपूर्ति हम वनों के विकास से ही कर सकते हैं । हम विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों का ज़्यादातर उपयोग करते हैं । इसके निरंतर प्रभाव से अमल वर्ष और ग्रीन हाउस प्रभाव पर असर पड़ता है ।

यदि हम अपने स्वच्छ धरा को कल्पित  करें तो कैसा होगा ? चारो तरफ खुशहाली होगी क्योंकि सभी सभी चीजों का संतुलन रहेगा । मनुष्य को जीवित रखने वाली चीजें जैसे हवा, पानी, भोजन सामग्री इत्यादि संतुलित तरीके से मिलती रहेंगी जिससे स्वास्थ्य की समस्या का समाधान होगा ।

स्वच्छ धरा में है राष्ट्र की सफलता ।

इसी से जीवन का रंग रूप बदलता ॥

एक स्वच्छ धरा को सुसज्जित करने के लिए हम सबका सहयोग बराबर रूप से है । समय – समय पर प्रकृति से ली जाने वाली चीजों के बदले प्रकृति को कुछ देते रहें तो संतुलन बना रहेगा , उदाहरण के लिए इमारत एवं आराम की वस्तुएँ बनाने के लिए यदि हम पेड़- पौधो को काटते हैं तो फलस्वरूप उतने ही पेड़ लगाकर प्रकृति को व्यवस्थित रखें अन्यथा संतुलन बिगड़ते देर नहीं लगती और विनाश की तेजी भी बढ़ जाती है ।

हमारा जीवन है अनमोल ।

स्वच्छता बिना नहीं है इसका मोल ॥

एक स्वच्छ धरा को रखने में हो सकता है बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है लेकिन परिश्रम का फल मीठा होता है । प्रकृति का हम मानव जाति पर बहुत ऋण है और यह ऋण तभी चुकाया जा सकता जब हम धरा को स्वच्छ रखे । उदाहरण के लिए जब हम किसी के घर अतिथि बनकर जाते हैं और उनके वहाँ बहुत स्वच्छता हो तो हम बहुत प्रभावित होते हैं और बाकी चीजों पर हमारा ध्यान आकर्षित नहीं होता है । यदि कुछ नकारात्मक चीजें भी वहाँ पर हो वें सब स्वच्छता की आड़ में छिप जाती है । इसके विपरीत यदि हम एक अतिथि बनकर दूसरे किसी ओर के घर जाते हैं और वहाँ पर स्वच्छता की अनदेखी की गयी हो और बहुत सी आकर्षण का केंद्र बन रही हो, फिर भी मन व्याकुल सा रहता है ।

स्वच्छ धरा में बस्ता जीवन

स्वच्छ

यदि हम इस स्वचलित घटना को इस धरा से जोड़ेंगे तो हमें समझ में आयेगा कि एक स्वच्छ धरा पर सब अपना जीवन यापन करना चाहते हैं भले ही वहाँ पर आवश्यकता की चीजों में थोड़ी कमी ही क्यों न हो । यदि आवश्यकता की चीजें अधिक मात्रा में उपलब्ध हो और धरा स्वच्छ न हो तो उन सब चीजों का क्या मोल ? उदाहरण के लिए हम मैसूर जैसी एक स्वच्छ धरा पर रह रहें हैं जिसकी देश विदेश में चर्चा है । जिसे सुनकर हमारे कानों को आनंद का अनुभव होता है और एक सकारात्मक सोच का जन्म होता है और यही कहीं विपरीत हो, तो कैसी नकारात्मक सोच का जन्म होगा ? आप कल्पना कर सकते हैं और कहीं न कहीं अपनी कमी को अंकित करेगा । स्वच्छता को हमें अपने निजी स्तर पर न रखकर वैश्विक स्तर पर रखना चाहिए । केवल हम अपने घर या आस – पास के क्षेत्र में समुचित न रहकर सोचे तो ही समाज का विकास संभव है । हम सब एक श्रेणी में बंधित है और हमने सुना है कि जंजीर की मजबूती उसकी हर एक कड़ी पर निर्भर करती है । यदि एक भी कड़ी कमजोर है तो जंजीर की मजबूती पर सवाल उठता है ठीक उसी प्रकार यदि हम धरा को स्वच्छ न रखें तो देश की मजबूती पर सवाल उठने लगता है ।

इससे निष्कर्ष यही निकलता है कि स्वच्छ धरा से ही स्वस्थ जीवन का निर्माण संभव है । बिना इसके जीवन का अस्तित्व संभव नहीं है । धरा को स्वच्छ रखने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने दायित्व का निर्वहन सकारात्मक तरीक से करना चाहिए तभी इस धरा पर स्वच्छ एवं स्वस्थ जीवन का निर्माण संभव है । प्रत्येक व्यक्ति को मानसिक एवं शारीरिक रूप से अपना योगदान निरंतर करते रहना चाहिए ताकि उनके आने वाली नस्लों पर इसके प्रभाव को संकुचित किया जा सके ।

स्वच्छ धरा है मानव की कृति ।

निर्भर है इस पर देश की उन्नति ॥

स्वच्छ धरा पर स्वस्थ जीवन को बसाने  के लिए प्रकृति के नियमों का सुचारु रूप से अवकलन होना चाहिए ।

अपहरण

काश मैं डॉक्टर होता ! (Kash Main Doctor Hota)

 

 

 

 

 

 

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