कहते हैं कि, वक्त कभी किसी के लिए नहीं रुकता । वह अपनी रफ्तार से चलता है, और जब इंसान को वक्त की ठोकर लगती है, तो इंसान की पूरी दुनिया बदल जाती है। ऐसा ही कुछ हुआ राजीव के साथ।
रवि एक मध्यमवर्गीय परिवार का इकलौता बेटा था। उसके माता-पिता ने बड़ी मेहनत से उसे पाला-पोसा और उसे अच्छी शिक्षा देने के लिए हर संभव कोशिश की। रवि पढ़ाई में होशियार था और उसकी महत्वाकांक्षाएँ ऊँची थीं। उसने एक अच्छे कॉलेज में दाखिला लिया और इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। उसके सपने थे कि वह एक बड़ी कंपनी में नौकरी करे, बहुत सारा पैसा कमाए और अपने माता-पिता को एक शानदार जीवन दे । रवि की किस्मत ने उसका साथ भी दिया। पढ़ाई खत्म होते ही उसे एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गई। उसकी जिंदगी में सब कुछ सही चल रहा था—अच्छी नौकरी, अच्छा पैसा, और समाज में इज्जत। धीरे-धीरे वह अपने काम में इतना डूब गया कि उसके पास अपने परिवार और दोस्तों के लिए समय ही नहीं बचा। वह अक्सर अपने माता-पिता को फोन पर कहता, “बस कुछ समय और, फिर मैं आपको यहाँ बुला लूँगा और हम सब एक साथ रहेंगे।”
वक्त की ठोकर
लेकिन वक्त ने एक ऐसी ठोकर दी, जिससे रवि का जीवन पूरी तरह बदल गया। एक दिन जब वह ऑफिस से घर लौट रहा था, उसकी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया। उस हादसे में वह गंभीर रूप से घायल हो गया। जब रवि को होश आया, तो उसने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया। डॉक्टरों ने उसे बताया कि उसके पैरों में गंभीर चोट आई है और उसे ठीक होने में महीनों लग सकते हैं। रवि का जीवन एक झटके में बदल गया। वह जो खुद को सबसे सफल और मजबूत मानता था, अब एक बिस्तर पर पड़ी हुई ज़िंदगी जीने पर मजबूर था। उसकी नौकरी चली गई, क्योंकि कंपनी को ऐसे कर्मचारी की ज़रूरत थी जो पूरी क्षमता से काम कर सके। रवि के सारे सपने धरे के धरे रह गए।
इस ठोकर के बाद रवि को अपने माता-पिता की याद आई। वे अब तक उसके साथ रहने नहीं आए थे, क्योंकि रवि उन्हें बुलाने के लिए तैयार नहीं था। अब जब उसे उनकी सबसे ज्यादा ज़रूरत थी, वे उसके पास नहीं थे। रवि ने अपने माता-पिता को फोन किया और रोते हुए सारी बात बताई। उसके माता-पिता तुरंत उसे देखने के लिए शहर आए। रवि का मन बहुत भारी था। वह अपने माता-पिता के सामने अपने आंसुओं को रोक नहीं सका। उसने कहा, “माँ, पापा, मैंने जिंदगी में सब कुछ पा लेने की चाह में आप लोगों को नजरअंदाज किया। मैंने सोचा कि जब मैं सफल हो जाऊँगा, तब आप लोगों को अपने साथ रखूँगा। लेकिन अब लगता है कि वक्त ने मुझे एक ऐसी ठोकर मारी है, जिससे मैं कभी नहीं उभर पाऊँगा।”
उसकी माँ ने प्यार से उसका हाथ पकड़ा और कहा, “बेटा, जिंदगी में सबसे बड़ी ठोकर वक्त की ही होती है। यह हमें वह सिखाती है, जो हम किसी और तरीके से नहीं सीख सकते। तुमने अपने जीवन की दौड़ में यह भूल किया कि अपनों को नज़रअंदाज़ किया। लेकिन अब जो हुआ, वह बीत गया। हम तुम्हारे साथ हैं, और हम मिलकर हर मुश्किल का सामना करेंगे।” रवि के पिता ने भी उसे सहारा देते हुए कहा, “बेटा, वक्त की ठोकरें हमें मजबूत बनाती हैं। तुम अपनी हिम्मत मत हारो। हम तुम्हारे साथ हैं और हम मिलकर तुम्हें फिर से खड़ा करेंगे।”
रवि ने अपने माता-पिता की बातों में एक नई उम्मीद पाई। उसने खुद को मानसिक रूप से मजबूत करना शुरू किया। डॉक्टरों ने उसे बताया कि अगर वह नियमित रूप से फिजियोथेरेपी करे और खुद पर विश्वास बनाए रखे, तो वह धीरे-धीरे चलने के काबिल हो सकता है।
रवि ने फिजियोथेरेपी शुरू की। यह सफर आसान नहीं था। उसे कई बार दर्द सहना पड़ा, लेकिन उसके माता-पिता हर पल उसके साथ खड़े रहे। उन्होंने उसे कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया। धीरे-धीरे, रवि ने खुद में बदलाव महसूस किया। उसने महसूस किया कि वह पहले से ज्यादा मजबूत और धैर्यवान हो गया है। समय बीतता गया, और धीरे-धीरे रवि ने अपने पैरों पर चलना शुरू कर दिया। यह उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा जीत थी। वह जानता था कि यह सब उसके माता-पिता के प्यार और उनके समर्थन के बिना संभव नहीं था।
रवि ने अपने पुराने नौकरी की चिंता छोड़ दी। उसने सोचा कि जो कुछ भी हुआ, वह एक सबक था, जिसने उसे जिंदगी की असली अहमियत सिखाई। अब वह अपने माता-पिता के साथ समय बिताता, उनके साथ हँसता-बोलता, और हर पल को जीने की कोशिश करता।
एक दिन रवि के पास उसके पुराने बॉस का फोन आया। उन्होंने रवि से कहा, “हमने तुम्हारे काम और तुम्हारी मेहनत को कभी नहीं भुलाया। कंपनी में तुम्हारे जैसे ईमानदार और मेहनती इंसान की ज़रूरत है। अगर तुम चाहो तो हम तुम्हें फिर से नौकरी देने के लिए तैयार हैं।” रवि ने एक पल के लिए सोचा और फिर मुस्कुराते हुए कहा, “शुक्रिया, लेकिन अब मैं वह इंसान नहीं रहा जो केवल काम में डूबा रहे। मैंने अपनी जिंदगी के सबसे कीमती पलों को खो दिया था, लेकिन वक्त की ठोकर ने मुझे यह सिखाया है कि परिवार और अपनों के साथ बिताया गया समय सबसे महत्वपूर्ण होता है। मैं अब अपने माता-पिता के साथ रहकर ही काम करना चाहता हूँ, चाहे वह कोई भी काम क्यों न हो।”
रवि ने अपने शहर में एक छोटी सी कंपनी शुरू की और अपने माता-पिता के साथ समय बिताने लगा। उसने महसूस किया कि सच्ची खुशी पैसे और काम में नहीं, बल्कि अपनों के साथ रहने में है। वक्त की ठोकर ने उसे गिराया जरूर था, लेकिन उसने उससे खड़ा होना भी सिखाया। कहानी का संदेश यही है कि जिंदगी में कितनी भी बड़ी ठोकर क्यों न मिले, अगर हमारे पास अपनों का साथ हो, तो हम हर मुश्किल को पार कर सकते हैं। वक्त की ठोकर हमें गिराती है, लेकिन वही ठोकर हमें मजबूत भी बनाती है, बशर्ते हम उससे सीखने के लिए तैयार हों।
नवजात शिशु को सर्दी खांसी के घरेलू उपाय
2 thoughts on “वक्त की ठोकर”